कलाम क्या लिखूँ

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ज्यों की कैद कर सकूँ उनके सारे रंग, ऐसे शब्दों के बाण क्या लिखूँ

ज्यों की बरी हौं जाऊं उनकी सज़ा से, कोई ऐसा बयान क्या लिखूँ

जिनका होना ‘होने’ पर खुद ही एक क़सीदा हो, उन पर कोई क़सीदा क्या लिखूँ

उनकी नाक पें सजे नग पे, कुछ यूँ हूँ फ़िदा की क्या लिखूँ

शहद से मीठी मुस्कान हो जिनकी, उनसे मीठी जुबान में क्या लिखूँ

उनके चेहरे को पढ़ने में लग जाए सदिया, मैं एक ही जान में क्या लिखूँ

जिनके काजल से शर्मा गयी ये स्याही, कलम में इस,  उस स्याही से क्या लिखूँ

जिनके लिए क़यामत टाल दे ख़ुदा, मैं उनकी शान में क्या लिखूँ

जिनकी जुल्फों की छाँव से जलती हों रातें, उस गहरी शाम में क्या लिखूँ

जिनके नाम से भर दूँ सेंकडौ दीवान, उन पर ‘एक’ ही कलाम क्या लिखूँ

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